भ्रमण प्राणायाम कैसे करें:-
भ्रमण प्राणायाम करते हुए शरीर को सीधा रखें और सांस धीरे-धीरे लें। सांस लेते हुए मन में 1 से 4 तक की गिनती करें और पूर्ण रूप से सांस लेने के बाद ही सांस छोड़ें। मन में संख्या की गिनती करें। इस प्राणायाम में सांस लेने से अधिक समय सांस छोड़ने में लगाना चाहिए। इस क्रिया में पहले चलते हुए सांस को 4 से 5 कदम तक रोक कर रखें और फिर छोड़ें। इसके बाद धीरे-धीरे सांस रोकने की क्षमता को बढ़ाते हुए 10 से 15 बार तक करें। शुरूआत में इस क्रिया का अभ्यास आघे घंटे तक कीजिए। यानी टहलने की शुरुआत में 2 मिनट, बीच में 2 मिनट और अंत में 2 मिनट तक अभ्यास करें। इसके बाद समय को बढ़ाते हुए 4-4 मिनट पर 3 बार करें।
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इस बात का रखें विशेष ध्यान:-
सांस लेने व छोड़ने की क्रिया सामान्य रूप से करें। इसके अभ्यास को अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार ही बढ़ाएं। इस प्राणायाम के अभ्यास के समय सीने के बाईं ओर जरा सा भी दर्द महसूस हो तो समझ लें कि अभ्यास आपकी शारीरिक क्षमता से अधिक हो रहा है। ऐसी स्थिति में कुछ समय तक अभ्यास बंद करके आराम करें और ठीक होने के बाद दुबारा इसे शुरू करें।
भ्रमण प्राणायाम के 5 जबरदस्त फायदे:-
♦ भ्रमण प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है तथा फेफड़ों में मजबूती आती है।
♦ जो लोग इसका अभ्यास करते है उनका दिल मजबूत होता है साथ ही साथ दिल का दौरा पड़ने की संभावना कम होती है।
♦ इसे करने से बालो का झड़ना, सफ़ेद होना आदि समस्याए दूर होती है। बालों की समस्या दूर करने के लिए इसे जरुर करना चाहिए।
♦ इसका नियमित अभ्यास कई तरह के रोगों का बचाव जैसे की टीबी, क्षयरोग, श्वांस संबंधी बीमारी, टायफाइड आदि से बचाव होता है।
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♦ भ्रामरी प्राणायाम करने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है। इस ध्वनि के कारण मन इस ध्वनि के साथ बंध सा जाता है, जिससे मन की चंचलता समाप्त होकर एकाग्रता बढ़ने लगती है।
♦ यह मस्तिष्क रोगों में भी लाभदायक है। इसके अलावा यदि किसी योग शिक्षक से इसकी प्रक्रिया ठीक से सीखकर करते हैं तो इससे उच्च-रक्तचाप सामान्य होता है।
♦ हकलाहट तथा तुतलाहट भी इसके नियमित अभ्यास से दूर होती है। इससे पर्किन्सन, लकवा, इत्यादि स्नायुओं से संबंधी सभी रोगों में भी लाभ पाया जा सकता है।